#Facebook के संदर्भ में कही गई पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की बात बड़ी मौजं हैं. बंटाई के खेत में मजदूर मालिक से अनाज हिस्सेदारी को लेकर बहस कर सकता है लेकिन खेत पर उसका कोई हक नहीं है. खेत पर दावा करने मजूरी भी चली जाएगी. फेसबुक धंधा है और धंधा सबसे पहले आता है. उसने समता, समाजवाद, अभिव्यक्ति और लोकतंत्र का वादा किसी से नहीं किया था और न ही उसे ऐसा करने का हक़ है. तो फेसबुक धंधा है इसलिए गंदा है. पर दिक्कत शुरू होती है जब एक ही तरह के मामलों में वह दो अलग मानदंड अख्तियार करता है.
फेसबुक की नीतियां एक ही तरह के मामले में भारत में कुछ, अमेरिका में कुछ और यूरोप में कुछ हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत तथाकथित तीसरी दुनिया का देश है? अगर आप पूछें कि इस हफ्ते की टिप्पणी की कॉमन थीम क्या है, तो मैं कहूंगा कि दोहरापन, पाखंड. फेसबुक से लेकर टीवी चैनलों और एंकर-एंकराओं तक इसी चरित्र से बारंबार आपका पाला पड़ेगा.
#Aamir Khan की तुर्की यात्रा के बाद टीवी चैनलों पर मचे हाहाकार के पीछे भी आपको यही दोहरापन दिखेगा, #SushantSinghRajput के मामले में #ArnabGoswami का यही दोहरापन दिखेगा और #PrashantBhushan के मसले पर #DeepakChaurasia का यही दोहरा चरित्र सामने आएगा.
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