मुस्लिम संप्रदाय में बकरीद को कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। पैगंबर इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश पर अपने 10 साल के बेटे की कुर्बानी देना कुबूल किया था, तभी से कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है। ईद उल अजहा के दिन हर कोई अल्लाह को कुर्बानी देना चाहता है लेकिन कुर्बानी के कुछ नियम हैं। इन नियमों के आधार पर ही अल्लाह को कुर्बानी दी जा सकती है। आइए जानते हैं कि कुर्बानी के नियम क्या हैं। – इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। बकरीद पर अल्लाह के पास हड्डियां, मांस या फिर खून नहीं पहुंचता है, उनके पास खुशु पहुंचती है यानी देने का जज्बा। आप समाज की भलाई के लिए क्या और कितना कर सकते हैं। किसी भी जानवर की कुर्बानी केवल एक प्रतिकात्मक कुर्बानी है।
There is a tradition in the Muslim community to celebrate Bakrid as a festival of sacrifice. Prophet Ibrahim had accepted the sacrifice of his 10-year-old son on the orders of Allah, since then the tradition of sacrifice is going on. Everyone wants to sacrifice to Allah on the day of Eid-ul-Adha but there are some rules of sacrifice. Only on the basis of these rules can Allah be sacrificed. Let us know what are the rules of sacrifice. - The tradition of placing special attention to the poor and Mjlumon Islam. Bones, flesh or blood does not reach Allah on Bakrid, but happiness reaches them, that is, the spirit of giving. What and how much can you do for the betterment of the society. The sacrifice of any animal is only a symbolic sacrifice.
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