यूपी पंचायत चुनाव के सज गई सियासी मंडी !
सियासी धमक कायम करने के लिए लग रही बोली !
देखिए कहां की मंडी में लग रहा है कितना भाव ?
जनता के लिए नहीं पैसा लेकिन कुर्सी के लिए लाखों लुटाने की तैयारी !
रुपयों की खातिर ईमान नीलाम कर रहे हैं राजनेता
देखिए क्या है यूपी की मौजूदा सियासी स्थिति ?
उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों खरीद फरोख्त का दौर चल रहा है…कुर्सी की खातिर लाखों की नीलामी का खेल चल रहा है और जीतने के बाद सियासी मलाई खाने के लिए नेता दल बदल के अलावा हर वो काम कर रहे हैं जिससे उनका बैंक बैलेंस मजबूत हो सके…गजब की बात ये हैं कि सत्ताधारी पार्टी से लेकर विपक्षी दल भी इस मामले में काफी सक्रिय हैं…कोरोना काल में जनता की मदद के लिए जिन नेताओं के पास कुछ नहीं था दीवालिया हो चुके थे…वो नेता अब जमकर पैसा लुटा रहे हैं जो बताता है कि सियासी सफेदपोशों के लिए सिर्फ और सिर्फ कुर्सी ही सबकुछ है…बाकी जनता मरती है तो मरे उन्हे फर्क नहीं पड़ता…बात करें पंयाचत चुनाव के बाद ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए धमाचौकड़ी की तो पैसे का खेल देखने को मिल रहा है…पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बड़े जिले में बहुजन समाज पार्टी के समर्थन से चुनाव जीते तीन जिला पंचायत सदस्य समाजवादी पार्टी के खेमे में नजर आ रहे हैं…सपाइयों का दावा है कि हर सदस्य ने 40 लाख रुपये लेकर अपनी दल बदल किया है…उधर, दलबदल करने वालों को कहना है कि टिकट लेने और चुनाव जीतने में किए गए खर्च की भरपाई करनी है…तो कोई न कोई विकल्प चाहिए ही चाहिए…ऐसे में इन दलबदलुओं की तो चांदी हो गई है…मोटी रकम पाने की चाहत में जीते सदस्य दलीय निष्ठा बदलने लगे हैं वोटों की खरीद फरोख्त का ये सिलसिला अमूमन सभी जिलों में जारी है…पांच लाख से लेकर 50 लाख रुपये तक कीमत पहुंच रही है…जहां मुकाबला कड़ा है, वहां वोटों की बोली आसमान छू रही है…नगदी के अलावा लक्जरी गाड़ी का मोलभाव भी होता है…जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुखों के चुनाव में हो रही देरी उम्मीदवारों पर भारी पड़ती जा रही है…क्य़ोकि जितनी देर होगी सदस्यों के दल बदल और कीमत बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाएगा…त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम पिछले महीने पांच-छह मई को घोषित हो चुके हैं, लेकिन अब तक जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुखों के चुनाव की तारीख घोषित नहीं हो सकी है…सूत्रों के अनुसार जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव 20 जून तक संभावित हैं…इसके बाद ब्लाक प्रमुखों के चुनाव जुलाई महीने के पहले पखवाड़े में कराए जा सकते हैं…जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव ग्रामीण राजनीति का रुख निर्धारित करने वाला माना जाता है…इसलिए सभी प्रमुख दल इसको गंभीरता से लेते है…सदस्यों के वोटों से होने वाले इन चुनावों में वर्चस्व बनाने के लिए सत्तापक्ष की ओर से पूरी ताकत लगायी जाती है, वहीं मुख्य मुकाबले में आने की होड़ विपक्षी दलों में भी होती है…अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए धनबल और बाहुबल जरूरी है…प्रदेश की 75 जिला पंचायतों में से 65 से अधिक पर अपने जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने का लक्ष्य लेकर मैदान में उतरी भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए विपक्ष खासतौर से समाजवादी पार्टी ताकत लगाए हुए है…चुनाव जीतने का समीकरण बनाने के लिए बाहरी उम्मीदवारों पर दांव लगाने से भी गुरेज नहीं किया जा रहा है…ऐसे में छोटे दलों की मुश्किलें बढ़ती हैं…उनके समर्थन से चुनाव जीते सदस्यों को दलबदल से रोक पाना आसान नहीं है…सपाइयों का दावा है कि 50 से अधिक जिला पंचायत अध्यक्ष उनके होंगे…अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्