हम सभी के जीवन में ऐसा बहुत-कुछ होता है, जिसे चाहे हम पसंद करें या नापसंद, नज़रअंदाज़
नहीं कर सकते। उनका होना हमारी आंख में खटकने के बावजूद और उन्हें मिटाकर भी नहीं
मिटाया जा सकता, जैसे गांधी। गांधी को तो मार दिया गया, मिटा उन्हें आज तक कोई भी नहीं
पाया। गांधी को मारने ने उन्हें और अधिक ज़िंदा कर दिया था, जिसके चलते वे संसार-भर में
आज तक प्रासंगिक हैं, पर आज यहां हम याद कर रहे हैं केवल उस गांधी को, जो ‘सत्य के
साथ’ अपने प्रयोग करता था, ख़ुद लाठी टेककर चलता था, लेकिन दुनिया को अपनी कलम से
रास्ता दिखाने का फ़न रखता था, जिसका भारत ‘यंग इंडिया’ का सपना देखता था।
महात्मा गांधी ने भी अपने उतार-चढ़ाव से भरे जीवन के हर पल का गवाह किताबों और अपनी
कलम को ही बनाया था। गांधी जी अपने जीवन का आधार किताबों को मानते थे, शायद यही
वजह है कि एक तरफ़ वे ऊंचे दर्जे के पाठक थे तो दूसरी ओर उनकी कलम का भी विस्तार
पटल बेहद व्यापक है। उन्होंने अनेक किताबें लिखी हैं, अनुवाद किए हैं, संपादन किया है और
एक कलम के सिपाही की तरह भी सक्रिय रहे हैं। आज भी बहुत से लोगों को अपने अनसुलझे
सवालों के जवाब महात्मा गांधी जी के साहित्य में, उनकी किताबों में, उनके विचारों में मिल
जाते हैं।
महात्मा गांधी की किताबों के पन्ने पीले ज़रूर पड़ गए हैं, पर उनके सबक आज भी साफ़-साफ़
दिखते हैं। गांधी जयंती पर, गांधी जी की कलम को ‘द वायर’ बेहद आदर से याद करता है,
‘हिंदी की बिंदी’ में।