महिलाओं में अवसाद क्यों होता है ज्यादा?

Patrika 2020-10-15

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जयपुर। हाल ही हमने मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया है, लेकिन यह हर दिन याद रखना होगा कि दुनियाभर में अवसाद सामान्य बीमारी बनता जा रहा है। ऐसे में हमारे समाज में इसे लेकर अभी जागरूकता का अभाव है। डब्ल्यूएचओ भी कह चुका है कि इस बीमारी का अन्य बीमारियों की तरह इलाज जरूर लें। एक अध्ययन में यह भी बात सामने आई है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अवसाद की शिकार ज्यादा होती हैं, लेकिन वे इस बारे में बात नहीं करती। शहर के मनोचिकित्सक भी कहते हैं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुना डिप्रेशन झेलती हैं और तीन गुना महिलाओं को आत्मघाती विचार तक आते हैं। इसका कारण सामाजिक माना जाता है। साथ ही महिलाओं के हार्मोन में बदलाव भी अवसाद का कारण बनते हैं।
एस्ट्रोजन की कमी जिम्मेदार
शहर की मनोचिकित्सक डॉ. अनीता गौतम कहती हैं कि मनुष्य के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन खुशी का हार्मोन होता है। इसी से दिमाग मेें खुशी की तरंगे जाती हैं। महिलाओं में होने वाले हार्मोनल बदलाव या पीरियड के दौरान यह हार्मोन शरीर में कम होने लगता है। उस समय महिलाओं में अवसाद ज्यादा होता है। इस पर लेकिन लोगों का ध्यान नहीं जाता और ना ही इस मूड स्विंग पर लोग उन्हें समझ पाते हैं। महिलाएं खुद इसलिए नहीं कहती क्योंकि हमारे समाज में महिलाओं को अपने बारे में बात करने की इजाजत ही नहीं है।

गैर बराबरी से होता है डिप्रेशन
डिप्रेशन का दूसरा बड़ा कारण डॉ. अनीता गौतम बताती हैं कि समाज में महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं है। इसलिए वे खुलकर अपना जीवन नहीं जी सकती। वे ज्यादातर आर्थिक तौर पर भी सक्षम नहीं होती। या अपने फैसले लेने का अधिकार उनके पास नहीं होता। इन कारणों से वे हमेशा के लिए डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं।

क्या है डिप्रेशन
देश में 3.9 फीसदी महिलाएं एंजाएटी का शिकार होती हैं, वहीं पुरुषों में इसका स्तर 2.7 फीसदी है। यदि दुखी रहना, हमेशा बुरा महसूस करना, हर काम में रूचि ना बनना, नींद ना आना लम्बे समय तक आपके जीवन में हैं तो यह डिप्रेशन के लक्षण हैं। दुनियाभर में लगभग 35 करोड़ लोग अवसाद से प्रभावित होते हैं।

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