राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1920 में गांधी आश्रम की स्थापना स्वदेश परिकल्पना को साकार करने के लिए की थी। 1920 से आज 2020 तक सौ साल के इस लंबे सफर में गांधी की परिकल्पना गांधी आश्रम की स्थिति आज बिल्कुल सौ साल के बुजुर्गो वाली होकर रह गई है। सरकारें आती रही और जाती रही। राष्ट्रपिता के नाम पर भाषणबाजी होती रही। लेकिन गांधी का सपना गांधी आश्रम दिनों—दिन अपनी पहचान खोता गया। कमोवेश इसी हालतों से मेरठ का गांधी आश्रम भी गुजर रहा है। जर्जर बिल्डिग तो गंदगी के ढेर। जिस टीन पर गांधी आश्रम का इतिहास लिखा है वह भी आज टूटी हालात में है। गांधी जयंती पर भी प्रशासन इसकी कोई सुध नहीं लेता।
35 हजार में नीलामी में खरीदी गई थी कोठी :—
1926 में लाला अयोध्या प्रसाद की ये कोठी जो कि आज गांधी आश्रम है। असौडा के जमीदार ने 35 हजार रूपये देकर नीलामी में खरीदी थी और गांधी आश्रम को दान कर दी थी। तब से ये गांधी आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हो गई। ये गांधी आश्रम् अपनी रचनात्मक गतिविधियों के कारण स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र रहा। दिल्ली के नजदीक होने के कारण यहां पर अक्सर क्रांतिकारियों और आजादी के दीवानों की बैठकें हुआ करती थी। खुद गांधी जी भी दो बार मेरठ आए और इस गांधी आश्रम में सभाएं की। मेरठ के इस गांधी आश्रम से पंजाब, जम्मू—कश्मीर, पश्चिम बंगाल, मप्र, दिल्ली आदि में खादी का प्रचार प्रसार किया गया। एक समय पूरे देश में एकमात्र मेरठ में ही खादी का राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाता था। राष्ट्रीय ध्वज के लिए खास तरीके का सूत मेरठ के गांधी आश्रम में ही काता जाता था।
बदलते वक्त के साथ पहचान खोता गया आश्रम :—
जिस आश्रम में 19 और 20 के दशक में सुबह शाम गांधी के भजन और रामधुन गाई जाती थी। आज वहां पर वीरानी छाई हुई है। बदलते वक्त के साथ आज मेरठ का गांधी आश्रम अपनी पहचान खो रहा है। गांधी आश्रम की जर्जर इमारत और उसके ऊपर उगे हुए पेड़ पौधे इसकी उपेक्षा की कहानी कह रहे हैं।
जनप्रतिनिधि भी नहीं करते गौर :—
इन सौं सालों में शायद ही जिले के किसी जनप्रतिनिधि ने इस गांधी आश्रम की ओर देखा हो या फिर यहां पर आए हो। वर्तमान में भाजपा सांसद राजेंन्द्र अग्रवाल से जब इस बारे में बात की तो उनका कहना था कि वे कई बार इसके लिए केंद्र को पत्र लिखकर इसकी दुर्दाशा के बारे में बता चुके हैं। लेकिन अपनी सांसद निधि से उन्होंने इसमें क्या कराया इसके बारे में कुछ नहीं बता सके।