सावन का महीना घेबर व सूतफेनी के कारोबार में चार चांद लगने का मौसम होता है.लेकिन इस बार कोरोना संकट ने अनलाॅक की स्थिति में भी स्वादिष्ट घेबर के कारोबार को लाॅक कर दिया है.घेबर कारोबारियों ने लाॅकडाउन समाप्त होने पर सीजनल कारीगरों को बाहर से बुला लिया था,लेकिन कोरोना संकट के कारण घेबर के कारोबार में मंदी ने उनके माथे पर चिंता की लकीरें डाल दी हैं.
वीओ- विगत कुछ सालों से कायमगंज में सावन के महीने में घेबर का कारोबार तेजी से पनपा है.मिठाई के लिए विख्यात सीमावर्ती कासगंज जिले से घेबर के कारीगरों को थोक विक्रेता दो माह के लिए बुलाकर घेबर का बड़े पैमाने पर उत्पादन कराते हैं.इस वर्ष लाॅकडाउन समाप्त होने पर कारोबारियों ने 20 हजार रुपये मासिक वेतन वाले कारीगरों को बुलाकर घेबर बनवानाशुरू कर दिया.वनस्पति घी से तैयार 280 रुपये किलो बिकने वाले घेबर की विगत वर्षों में भारी खपत रही है.इस वर्ष कोरोना संकट के कारण घेबर कारोबारी परेशन हैं.क्योंकि बाहर से आने वाले कारीगरों व उनके सहायकों को वेतन तो पूरा देना होगा.भले उत्पादन या बिक्री हो या न हो.बताया गया कि आमतौर पर सावन माह में कन्या पक्ष अपनी बेटियों व बहनों की ससुराल में सावनी के तौर घेबर व सूतफेनी की सौगात भेजते हैं,जिससे इनकी काफी खपत रहती है.कोरोना संकट में आवागमन न होने से घेबर की बिक्री को आघात लगा है.घेबर कारोबारी मुकेश चंद्र ने बताया कि वह 1985 से यह व्यापार कर रहे हैं. घेबर बनाने का काम सिर्फ सावन माह भर ही चलता है. इसको थोक बाजार में 160-170 रुपये किलो बेचा जाता है,जबकि बाजार में रबड़ी वाला घेबर 220 रुपये किलो और मेवे वाला 260 रुपये किलो में बिकता है.उन्होंने बताया कि इसे मैदा,दूध, वनस्पति और बर्फ डालकर तैयार करते है