मांगणियार लोक कला : रेगिस्तान के धोरों में दफन होता रोजगार, कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

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बाड़मेर। कानों में मिश्री घोलती खड़ताल की आवाज खामोश है। कालबेलिया-घूमर डांस में थिरकने वाले कदम ठहर से गए हैं। घुंघरू शांत हो चुके हैं। कठपुतलियों को नचाने वाली उंगलियां भी बेजान-सी हैं। हम बात कर रहे हैं मांगणियार लोक कलाकारों की, जो राजस्थान की शान हैं।

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