जयपुर। राजस्थान में सियासी संकट के बीच सचिन पायलट को कांग्रेस से बगावत का खामियाजा भुगतना पड़ा है। पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। सचिन पायलट की जगह शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। सचिन पायलट के साथ उनके करीबी दो मंत्रियों विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को बर्खास्त कर दिया गया है। साथ ही तीनों को नोटिस जारी किया गया है।
हेम सिंह शेखावत को सेवादल कांग्रेस के नए अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई है। वहीं गणेश घोघरा को युवक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात की और सचिन पायलट, विश्वेंद्र सिंह, और रमेश मीणा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए जाने का प्रस्ताव सौंपा, जिसे राज्यपाल द्वारा तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया गया। इससे पहले एक होटल में आयोजित विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट और उनके साथ गए विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। विधायकों ने हाथ उठाकर प्रस्ताव पारित किया।
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने एक षडयंत्र के तहत राजस्थान की 8 करोड़ जनता के सम्मान को चुनौती दी है। भाजपा ने साजिश के तहत कांग्रेस की सरकार को अस्थिर कर गिराने की साजिश की है। भाजपा धनबल और सत्ताबल से कांग्रेस पार्टी और निर्दलीय विधायकों को खरीदने की कोशिश की है।
सुरजेवाला ने कहा कि सचिन पायलट भ्रमित होकर बीजेपी के जाल में फंस गए और कांग्रेस सरकार गिराने में लग गए। पिछले 72 घंटे से कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट और अन्य नेताओं से संपर्क करने की कोशिश की। कांग्रेस की ओर से लगातार सचिन पायलट को मनाने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने लगातार हर बात को नकारा।
बैठक से पहले कांग्रेस नेता अविनाश पांडे ने सचिन पायलट से बैठक में आने की अपील की। उन्होंने ट्वीट किया कि मैं सचिन पायलट और उनके सभी साथी विधायकों से अपील करता हूं कि वे आज की विधायक दल की बैठक में शामिल हों। कांग्रेस की विचारधारा और मूल्यों में अपना विश्वास जताते हुए कृपया अपनी उपस्थिति निश्चित करें व सोनिया गांधी व राहुल गांधी जी के हाथ मजबूत करें। इसके बाद कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इसका ऐलान किया।
सचिन पायलट को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। पिछले सालों की बात करें तो करीब आधा दर्जन ऐसे नाम हैं, जिन्हें राहुल आगे लेकर आए, लेकिन उन्हें ही पार्टी छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा है। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में युवा मंत्रियों की अच्छी संख्या थी, लेकिन संगठन को लेकर संतुलन बनाने की कोशिश में युवा नेताओं को सीनियर्स के चलते पीछे धकेला गया। इसी कारण के चलते राहुल गांधी ने जिन प्रदेशों में युवा प्रभारी और अध्यक्ष बनाए, वे अपना कार्यालय भी पूरा नहीं कर पाए।