किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि केंद्र सरकार देश के किसानों को विदेशों की तर्ज पर व्यापारी बनाने के लिए 4,496 करोड़ रुपए का प्रावधान करने का वक्तव्य देकर किसानों को झांसा दे रही है । वर्ष 2016-17 के केन्द्रीय बजट में सरकार ने किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने का संकल्प व्यक्त किया था लेकिन इसके बाद किसानों की आय में बढ़ोतरी तो नहीं हुई, बल्कि उनकी आय घटी है। इस तथ्य को छुपाने के लिए ही भारत सरकार इस प्रकार के वक्तव्य देकर किसानों को भटका रही है। इसके लिए कृषक उत्पादक संगठन बनाकर किसानों को उनकी उपजों का अधिकतम मूल्य दिलाकर उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने का दंभ भर रही है। इस योजना में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तीन वर्षों में 15 लाख रुपए देने की घोषणा कर रही है, जो कृषक उत्पादक संगठन बनाने के उपरांत प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए दिए जाएंगे। इससे किसानों को उनकी उपजों के देश भर में उचित दाम प्राप्ति का अवसर उपलब्ध कराने का झूठा विश्वास दिला रही है।
किसानों ने घाटे में बेची फसलें
जाट ने कहा कि केंद्र सरकार ने तिलहन एवं दलहन की उपजों पर मूल्य समर्थन योजना के तहत कुल उत्पादन में से 25 फीसदी से अधिक की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया। जिससे मूंग.अरहर.उड़द.सरसों.मूंगफली.चना के उत्पादक किसानों को अपनी 75फीसदी से अधिक उपजे न्यूनतम समर्थन मूल्यों से भी 1200 से लेकर 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक घाटे में बेचनी पड़ी। दालें, खाने के तेल एवं चना विदेशों से मंगाने के कारण इन उपजों के भाव नीचे गिरे, जिसका घाटा किसानों को वहन करना पड़ा। यह स्थिति तो तब है जब देश में 23 मिलियन टन दालों की आवश्यकता है तथा पिछले 3 वर्षों से देश का दलहन का उत्पादन 23 मिलियन टन से अधिक हो रहा है। यहां आत्मनिर्भरता के नाम पर देश को विकलांगता की ओर धकेला जा रहा है।
केंद्र सरकार का दस हजार कृषक उत्पादन संगठन पहले चरण में बनाने का लक्ष्य है। दूसरी ओर देश में 93,995 से अधिक प्राथमिक कृषि ऋणदात्री सहकारी समितियां विद्यमान हैं। नए प्रयोगों के स्थान पर इन जैसी सहकारी समितियों को ही गौण मंडी घोषित किया जाता तो उन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद संभव हो जाती जिससे किसानों को न्यूनतम मूल्य प्राप्ति तो सुनिश्चित हो जाती।