पराधीन सपनेहुं सुख नाहिं। इसीलिए इस देश ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया था। सच्चाई तो यह है कि आज भी हम पराधीन हैं। नेताओं ने गरिमा खो दी। अधिकारी पराए हो गए। जनता प्रतिनिध चुनकर गूंगी होने के मजबूर हो गई। योजनाएं जमीन से जुड़े मुद्दों को नहीं बनती। कमीशन को ध्यान में रखकर निरर्थक मुद्दों की बनती है। सारे निर्माण इसी तर्ज पर होते हैं। यही कारण है कि सत्तर सालों में विकास केवल गरीबी रेखा के नीचे हुआ है। कृषि प्रधान देश की अधिकांश जमीनें सड़कें और पुल खा गए। पेश है पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की कलम से... आधुनिक विकास की होड़
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