राज्य की प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की कमी को लेकर राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए। अरसे से राज्य की स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की कमी है।
समानीकरण से आई समस्या
राज्य में जब वर्ष 2015 में स्कूलों का समानीकरण किया गया, उस समय उर्दू शिक्षकों को अन्यत्र स्कूलों में लगाया गया। यहां तक कि जहां पर उर्दू विषय ही नहीं था, उन स्कूलों में भी इन शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद से जिन स्कूलों में उर्दू पढ़ने वाले स्टूडेंट थे, वे इस भाषा में पढ़ाई नहीं कर पाए। उसके बाद से विशेषकर प्राथमिक स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों की कमी आई है। जबकि हिंदी और अंग्रेजी ही इन स्कूलों में भाषा के तौर पर पढ़ा जा रही है।
13,500 से ज्यादा स्कूलें
राजस्थान सरकार के शाला दर्पण के अनुसार करीब 13500 से ज्यादा स्कूलों में उर्दू शिक्षा पढ़ने वाले छात्र—छात्राएं हैं। इन सभी में तृतीय भाषा के रूप में उर्दू विषय के शिक्षक ही नहीं हैं, तो स्टूडेंट्स पढ़े कैसे? जितने उर्दू विषय के शिक्षक हैं, उसके अनुपात में राज्य सरकार ने पद सृजित नहीं किए हैं। इसे लेकर उर्दू अध्यापकों के लिए रीट परीक्षा आयोजित करने की मांग की जा रही है। अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी महासंघ राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हारुन खान ने बताया कि राज्य सरकार ने इस रीट परीक्षा के लिए कमेटी तो गठित कर दी है, लेकिन अब तक भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की गई है।
मॉडल स्कूलों में भी हो तृतीय भाषा का विकल्प
महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष हारुन खान ने बताया कि राज्यभर की महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में तृतीय भाषा का विकल्प नहीं है। यहां भी उर्दू, पंजाबी, सिंधी भाषाओं को कोर्स शामिल किया जाना चाहिए। ताकि स्टूडेंट्स को तृतीय भाषा के रूप में इन भाषाओं का भी ज्ञान हो।