Tapkeshwar Mandir katha || History of Tapkeshwar Mandir || टपकेश्वर मंदिर || Mahabharat Katha || महाभारत कथा || Dehradun || Uttarakhand

The World's Vow 2020-06-14

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#टपकेश्वर #मंदिर #महाभारत_कथा #देहरादून

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस video में उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून जिले में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक “ Tapkeshwar Temple , Dehradun !! (टपकेश्वर मंदिर) ” के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है | यदि आप “टपकेश्वर मंदिर” के बारे में जानना चाहते है , तो इस video को अंत तक जरुर देखे |

टपकेश्‍वर मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । टपकेश्वर मंदिर देहरादून शहर के बस स्टैंड से लगभग 7 किमी दूर स्थित एक प्रवासी नदी के तट पर स्थित है । यह मंदिर सिध्पीठ के रूप में भी माना जाता है | टपकेश्वर मंदिर में “टपक” एक हिन्दी शब्द है , जिसका मतलब है “बूंद-बूंद गिरना” । टपकेश्वर मंदिर एक प्राकर्तिक गुफा है , जिसके अन्दर एक शिवलिंग विराजमान है | यह कहा जाता है कि गुफा के अन्दर विराजित शिवलिंग पर चट्टानों से लगातार पानी की बूंदे टपकती रहती है तथा पानी की बुँदे स्वाभाविक तरीके से शिवलिंग पर गिरती है | जिस कारण इस मंदिर का नाम “टपकेश्वर मंदिर” पड़ गया | मंदिर के कई रहस्य हैं और मंदिर के निर्माण के ऊपर भी कई तरह की बातें होती रहती हैं | कोई कहता है कि यहाँ मौजूद शिवलिंग स्वयं से प्रकट हुआ है , तो कई लोग बताते हैं कि पूरा मंदिर ही स्वर्ग से उतरा है | यह माना जाता है कि मंदिर अनादी काल से इस स्थान पर विराजित है और यह भी माना जाता है कि यह पवित्र स्थान गुरु द्रोणाचार्य जी की तपस्थली है | टपकेश्वर मंदिर में दो शिवलिंग विराजित है , जिसमे से प्रमुख शिवलिंग स्वयम्भू है अर्थात शिवलिंग को किसी ने बनाया नहीं है एवम् मंदिर में विराजित दूसरा शिवलिंग पूरी तरह रुद्राक्ष से जड़ा हुआ है तथा भक्तगण मुख्य शिवलिंग के साथ-साथ दुसरे शिवलिंग के भी दर्शन कर सकते है | टपकेश्वर मंदिर में सभी देवी देवताओं की प्रतिमा है | मंदिर में माँ वैष्णो का भी मंदिर बनाया गया है जिसमें एक प्राकर्तिक गुफा है को कि माँ वैष्णो देवी के मंदिर की याद दिलाता है | इस मंदिर में भगवान हनुमान जी की भी एक विशाल मूर्ति है जो कि इस मंदिर का मुख्य आक्रर्षण है ।

शिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्‍या में श्रद्धालु एवम् भक्तगण इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं | इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का शुभ विवाह समारोह आयोजित होता है । मान्यता है कि भांग, बिल्वपत्र, धतूरा, दूध आदि से महादेव का अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है |

एक अन्य कथा के अनुसार इस स्थान को गुरु द्रोणाचार्य की साधना-स्थली कहा जाता है एवम् ऐसा भी कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने ही इसी स्थान पर शिवलिंग की सबसे पहले खोज की थी | भारत की यात्रा के दौरान गुरु द्रोणाचार्य इसी स्थान पर आये थे और उनकी भेट एक महर्षि से हुयी थी और द्रोणाचार्य ने महर्षि से भगवान शिव के दर्शन की अभिलासा व्यक्त की | इस अभिलासा को पूरा करने के लिए महर्षि ने द्रोणाचार्य को ऋषिकेश जाने के लिए कहा था | जब गुरु द्रोणाचार्य इस स्थान पर पहुंचे तो उनको इस स्थान पर एक शिवलिंग दिखा | कहा जाता है कि पहाड़ी गुफा में स्थापित शिवलिंग स्थापित नहीं किया गया था एवम् यह शिवलिंग खुद ही प्रकट हुआ था इसलिए शिवलिंग को स्वयम्भू कहा जाता है | इस स्थान पर देवताओं से लेकर गन्धर्व तक भगवान शिव के दर्शन के लिए आते है |

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