प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः। सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः॥
जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है ; परन्तु साधु अथवा श्रेठ व्यक्ति संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता । अतः साधु पुरुष सागर से भी महान होता है ।
साधु-संतों की अपनी अलग ही दुनिया होती है। मैं उज्जैन के सिंहस्थ(२०१६) में पहली बार गया था।इन संतो को देखकर एक अलग आनंद की अनुभूति होती है। सिंहस्थ महापर्व में ऐसे अनेक साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है जो अपने हठयोग के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए रहते है। ये संत कई तरह की साधनाएं करते हैं। असल में ये संत सनातन संस्कृति के रक्षक है।
इन संतो को कोटि कोटि प्रणाम।
जय महाकाल, जय भोलेनाथ
जय श्री राम
#KumbhMela #palghar #DpkArt