आत्मा जन्मी नहीं तो पुनर्जन्म कैसे, कर्ता नहीं तो भोक्ता कैसे || आचार्य प्रशांत, उत्तरगीता पर (2019)

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वीडियो जानकारी:
हार्दिक उल्लास शिविर , 19.10.19, लखनऊ , भारत

प्रसंग:
एवं पूर्वकृतं कर्म नित्यं जन्तु: प्रपद्यते।
सर्व तत्कारणं येन विकृतोअयमिहागत:।।
भावार्थ: इस प्रकार जीव सदा अपने पूर्व जन्मों में किये हुए कर्मों का फल भोगता है। यह आत्मा निराकार ब्रह्म होने पर भी विकृत होकर इस जगत में जो जन्म धारण करता है, उसमें कर्म ही कारण है।
प्रश्न: आत्मा निर्विकार होते हुए भी किस प्रकार कर्म में संलिप्त होती है तथा श्लोक 12 में किसके पूर्वजन्म की बात की गई हैं। कृपया मार्गदर्शन करिए।
~उत्तर गीता (अध्याय 3, श्लोक 23)

~ क्या आत्मा का पुनर्जन्म होता है?
~ मृत्यु के बाद क्या है?
~ क्या आत्मा भ्रमित होकर माया में लिप्त हो जाती है?

संगीत: मिलिंद दाते

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