हमसफ़र मेरे हमसफ़र, पंख तुम परवाज़ हम || आचार्य प्रशांत: आँख ने शरमा के कह दी दिल के शरमाने की बात

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शब्दयोग सत्संग
१९ जून, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा

गीत: हमसफ़र मेरे हमसफ़र

हमसफ़र मेरे हमसफ़र, पंख तुम परवाज़ हम

ज़िन्दगी का साज़ हो तुम, साज़ की आवाज़ हम

हमसफ़र मेरे हमसफ़र, पंख तुम परवाज़ हम

ज़िन्दगी का गीत हो तुम, गीत का अंदाज़ हम

आँख ने शरमा के कह दी

दिल के शरमाने की बात

एक दीवाने ने सुन ली

दूजे दीवाने की बात

प्यार की तुम इम्तेहां हो

प्यार का आग़ाज़ हम

हमसफर मेरे हमसफर…

ज़िक्र हो जब आसमाँ का

या ज़मीं की बात हो

ख़त्म होती है तुम्हीं पर

अब कहीं की बात हो

हो हसीं तुम, महजबीं तुम

नाज़नीं तुम, नाज़ हम

हमसफर मेरे हमसफर..

फ़िल्म: पूर्णिमा (1965) (Purnima)
गीत: हमसफ़र मेरे हमसफ़र (Humsafar Mere Humsafar)
संगीतकार: लता मंगेशकर, मुकेश (Lata Mangeshkar & Mukesh)
बोल: अनजान


संगीत: मिलिंद दाते

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