वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२३ मार्च २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अष्टावक्र गीता (अध्याय १८ श्लोक ७६)
मन्दः श्रुत्वापि तद्वस्तु न जहाति विमूढतां।
निर्विकल्पो बहिर्यत्नाद- न्तर्विषयलालसः॥
अज्ञानी तत्त्व का श्रवण करके भी अपनी मूढ़ता का त्याग नहीं करता, वह बाह्य रूप से तो निसंकल्प हो जाता है पर उसके अंतर्मन में विषयों की इच्छा बनी रहती है॥
प्रसंग:
अष्टावक्र मुर्ख किसे बताये है?
आत्मा की आवाज को कैसे सुने?
सुन सुन कर भी क्यों नहीं समझते?