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शब्दयोग सत्संग
२४ मई, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नोएडा
गीत: रात और दिन दिया जले
रात और दिन दिया जले,
मेरे मन में फिर भी अँधियारा है
जाने कहा है, ओ साथी,
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन…
पग पग मन मेरा ठोकर खाए,
चाँद सूरज भी राह ना दिखाए
एसा उजाला कोइ मन में समाये,
जिस से पीया का दर्शन मिल जाए
रात और दिन…
गहरा ये भेद कोई मुझ को बताये,
किसने किया है मुझपर अन्याय
जिस का हो दीप वो सुख नहीं पाए,
ज्योत दिए की दूजे घर को सजाये
रात और दिन…
खुद नही जानू ढूंढे किस को नजर,
कौन दिशा है मेरे मन की डगर
कितना अजब ये दिल का सफ़र,
नदिया में आये जाए जैसे लहर
रात और दिन…
गीत: रात और दिन दिया जले
संगीतकार: मुकेश, लता मंगेशकर
फ़िल्म: रात और दिन(१९६७)
बोल: हसरत जयपुरी
संगीत: मिलिंद दाते