वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२७ जनवरी २०१३
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
सतगुरु साँचा शूरमा, नख शिख मारा पूर |
बाहिर घाव न दीसई, अंतर चकना चूर ||
~ गुरु कबीर
प्रसंग:
एक शिष्य, गुरु के लिए क्या कर सकता है?
गुरु- शिष्य क्या हैं वास्तव में?
गुरु- शिष्य में कैसा सम्बन्ध हो?
गुरु को कैसे समर्पित करें?
गुरु के सान्निध्य में होने का क्या आशय है?
शिष्य को अनुशासित होना कितना आवश्यक है?
गुरु से शिष्य को क्या मिलता है?
गुरु कौन?
किसी को गुरु मानने से पहले क्या ध्यान में रखना चाहिए?
आध्यात्मिक गुरु का क्या अर्थ है?
संतों ने गुरु को सबसे ऊँचा दर्जा क्यों दिया है?
मन गुरु के प्रति समर्पित कैसे रहे?
गुरु से मिली सीख को सदैव अपने साथ कैसे रखें?
गुरु के सान्निध्य से क्या लाभ है?
गुरु कबीर ऐसा क्यों कहते हैं कि 'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाय।।'
संगीत: मिलिंद दाते