वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२६ जून, २०१७
अद्वैत बोध शिविर
रामनगर, उत्तराखंड
अनादाविह संसारे संचिताः कर्मकोटयः ।
अनेन विलयं यान्ति शुद्धो धर्मो विवर्धते ॥
॥ ३७॥ ॥ अध्यात्मोपनिषत् ॥
Crores of karmans, accumulated in this beginningless transmigratory life, are dissolved by means of concentration: (then) pure virtue begins to flourish.
Verse: 37, Adhyaatma Upanishad
प्रसंग:
धर्म क्या है?
उपनिषद धर्म किसे बताता है?
धर्म की क्या महत्ता होती है?
सत्य और धर्म में क्या अंतर होता है?
सत्य और धर्म में से कौन बड़ा?
सत्य और धर्म में क्या समानता है?
धार्मिक चित कैसा होता है?
धर्म को कैसे समझें?
धर्म की प्रासंगिकता क्या है?
धार्मिक और अधार्मिक में क्या भेद है?
संगीत: मिलिंद दाते