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शब्दयोग सत्संग
५ मई २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहे:
१) जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव।
कहै कबीर सुन साधवा, करु सतगुरु की सेव॥
~ संत कबीर
२) बन्धे को बन्धा मिलै, छूटै कौन उपाय।
कर संगति निरबंध की, पल में लेत छुड़ाय।।
~ संत कबीर
३) साबुन बिचारा क्या करे, गाँठे राखे मोय ।
जल सो अरसां नहिं, क्यों कर ऊजल होय ॥
~ संत कबीर
प्रसंग:
गुरु कौन?
सतगुरु का क्या परिभाषा है?
गुरु का क्या रूप है?
"जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव। कहै कबीर सुन साधवा, करु सतगुरु की सेव"॥ इस दोहे क्या क्या आशय है?
ब्रह्मा कौन है?
मुक्ति क्या है?
गुरु के प्रति समर्पण कैसे करें?
समर्पण का महत्व क्या है?
गुरु के सान्निध्य में होने का क्या आशय है?
किसी को गुरु मानने से पहले क्या ध्यान में रखना चाहिए?
संतों ने गुरु को सबसे ऊँचा दर्जा क्यों दिया है?
संत कबीर ऐसा क्यों कहते हैं कि 'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाय।।