वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२९ जून २०१४,
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई |
पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई || (संत रहीम)
प्रसंग:
वह कौनसा दर्द है जिसके आगे प्राणों का त्याग भी छोटी बात लगती है?
वह क्या है जो कुर्बान होकर ही पाया जा सकता है?
संत रहीम इस दोहे के माध्यम से किस सुनहरी पीड़ा की बात कर रहे है?