वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
७ दिसम्बर २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
अष्टावक्र गीता (अध्याय २ श्लोक २२)
नाहं देहो न मे देहो जीवो नाहमहं हि चित्।
अयमेव हि मे बन्ध आसीद्या जीविते स्पृहा॥
प्रसंग:
क्या आपका जीवन देह केन्द्रित ही है?
क्या आपके जीवन में हर गतिविधि सिर्फ़ देह संबंधित ही है?
डर और हिंसा क्या आपके जीवन में कूट-कूट कर भरा हुआ है?