जहाँ सीमाएँ हैं वहाँ दुःख है || आचार्य प्रशांत,संत कबीर पर (2014)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
७ दिसम्बर २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
अष्टावक्र गीता (अध्याय २ श्लोक २२)
नाहं देहो न मे देहो जीवो नाहमहं हि चित्।
अयमेव हि मे बन्ध आसीद्या जीविते स्पृहा॥

प्रसंग:
क्या आपका जीवन देह केन्द्रित ही है?
क्या आपके जीवन में हर गतिविधि सिर्फ़ देह संबंधित ही है?
डर और हिंसा क्या आपके जीवन में कूट-कूट कर भरा हुआ है?

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