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शब्दयोग सत्संग
11 अगस्त, 2019
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः॥५.१९॥
भावार्थ : जिनका मन सम भाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है; क्योंकि सच्चिदानंद परमात्मा निर्दोष और सम है, इसलिए वे सच्चिदानंद परमात्मा में ही स्थित हैं॥
सेवा किसकी करें?
जीवन जीने की कला क्या है?
सच्चिदानंद स्वभाव में कैसे जिएँ?
संगीत: मिलिंद दाते