वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१७ अगस्त २०१३
ए.के.जी.ई.सी, गाज़ियाबाद
श्लोक:
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात्, विषयान विषवत्त्यज।
क्षमार्जवदयातोष, सत्यं पीयूषवद्भज॥ (अष्टावक्र गीता, अध्याय १, श्लोक २)
प्रसंग:
शब्दों के माध्यम से शून्यता कैसे पायें?
क्या शब्द मौन में ले जा सकते हैं?
क्या शब्दों में भी मौन छुपा हो सकता है?
अष्टावक्र नैतिक मूल्यों की पालन करने को क्यों बोल रहें है?
क्षमा, संतुष्टि, सत्य को अष्टावक्र मुक्ति के लिए आवश्यक क्यों बता रहें हैं?