कुर्सी के लिए शिवसेना ने बीजेपी से कट्टी कर ली है. स्टेज सेट हो चुका है. तो अपने स्वाभाविक सहयोगी से अलग होने का शिवसेना को क्या फायदा होगा और क्या घाटा होगा? कुर्सी तो मिलेगी लेकिन वोटर के गुस्से का क्या? सियासत की तराजू में इन दोनों में किसका पलड़ा भारी है?