अयोध्या पर अदालती विवाद को पूरे 70 साल होने आए हैं। पहला मुकदमा 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुआ था। आज देश की सर्वोच्च अदालत ने इस पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन रामलला विराजमान को देने का आदेश दिया और कहा कि मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन आवंटित की जाए। जानकारी के लिए बता दें पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से तमाम प्रमाण अयोध्या और राम से संबद्ध ही हैं। 1862 और 1865 ई. के बीच, कनिंघम ने उत्तरी भारत में अनेक पुरातात्विक सर्वेक्षण किए। पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से तमाम प्रमाण अयोध्या और राम से संबद्ध ही हैं। 1862 और 1865 ई. के बीच, कनिंघम ने उत्तरी भारत में अनेक पुरातात्विक सर्वेक्षण किए। इनका उद्देश्य उन स्थानों का पता लगाना था, जहां चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने यात्राएं की थीं। फाह्यान 400 से 410 ई. के बीच और ह्वेनसांग 662 ई. में भारत आए थे।
कनिंघम ने विश्वास जताया कि फाह्यान ने जिसे शा-ची और ह्वेनसांग ने जिसे विशाखा बताया, दरअसल दोनों एक ही हैं क्योंकि दोनों ने इस नगर के दक्षिणी छोर पर एक छह- सात फुट ऊंचे पेड़ का ज़िक्र किया था जो न कभी बढ़ता था, न छोटा होता था। कहा जाता है कि बुद्ध ने यहां दातून का टुकड़ा फेंक दिया था। वही बाद में पेड़ बन गया। कनिंघम आख़िरकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विशाखा ही साकेत या अयोध्या या अजुध्या या अयोज्झा या अयुधा है, जो हिंदुओं के सात पवित्र स्थानों यानी सप्तपुरी में से एक है।
अयोध्या का शाब्दिक अर्थ अजेय है। शास्त्रों, पुराणों के अनुसार अयोध्या विष्णु का ललाट है। कारनेगी ने कहा है- अयोध्या का हिंदुओं के लिए वही महत्व है जो मुसलमानों के लिए मक्का और यहूदियों के लिए यरूशलम का है। अयोध्या का संबंध राम के आख्यान और सूर्यवंश से है (राम को विष्णु का अवतार माना जाता है जिसका संबंध सूर्य से है)।
अयोध्या पहले वैष्णव उपासना का केंद्र रही। पांचवीं शताब्दी में यहां गुप्त वंश का राज रहा। सातवीं शताब्दी में यह नगर निर्जन हो गया। मध्यकाल के शुरू में यह मुग़लों के नियंत्रण में आ गया। अठारहवीं सदी में मुस्लिम शासकों ने अयोध्या छोड़ फ़ैज़ाबाद को राजधानी बना लिया। दरबार हटते ही हिंदुओं पर दबाव हट गया, इसलिए यहां-वहां मंदिर और मठ अस्तित्व में आए। राम और राम मंदिरों का इतिहास काफ़ी पुराना है। पहली से 10वीं शताब्दी के दौरान राम लोकप्रिय अवतार के रूप में स्थापित थे। जैसे गुप्तकाल (5वीं शताब्दी) में देवगढ़ मंदिर में राम स्थापित थे (टीए गोपीनाथ, एलीमेंट्स ऑफ हिंदू आइकोनोग्राफी, भाग-1)। इस संदर्भ में लगभग संपूर्ण भारत में मूर्ति शिल्प संबंधी प्रमाण हैं। वराहमिहिर (400ई.) द्वारा संकलित वृहद्संहिता में लिखा है कि राम की मूर्ति का गठन किस रूप में हो (डेवलपमेंट ऑफ हिंदू आइकोनोग्राफी जेएन बनर्जी, कलकत्ता-1954 पृष्ठ 420)। अनेक मध्यकालीन मंदिरों में रामायण पर आधारित दृश्य अंकित हैं। ऐसे मंदिर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि इंडो-चाइना एवं इंडोनेशिया में भी थे (जेईएन बनर्जी)। यहां तक कि कंपूचिया (द्वितीय शताब्दी), जावा (8वीं शताब्दी) और बोर्नियो में भी राम के मंदिर थे (एनसिएंट इंडिया, राधाकुमुद मुकर्जी, इलाहाबाद -1956)।
इस सबका सार यह है कि जब सारे ऐतिहासिक और पौराणिक प्रमाण मौजूद हैं तो झगड़ा किस बात का है? अयोध्या तब से अब तक वही है, वहीं है, फिर राम को इतना लम्बा वनवास क्यों?