श्राद्ध के बारे में अनेक धर्म ग्रंथों में कई बातें बताई गई हैं। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई ऐसी बातें बताई हैं, जो वर्तमान समय में बहुत कम लोग जानते हैं। महाभारत में ये भी बताया गया है कि श्राद्ध की परंपरा कैसे शुरू हुई और फिर कैसे ये धीरे-धीरे जनमानस तक पहुंची।
महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। निमि ने अपने गुरु अत्रि से पूछा था कि अपने मरे हुए परिजनों को याद करने और परलोक में उन्हें सुख देने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कौन सा उपाय सबसे श्रेष्ठ है। तब अत्रि ऋषि ने निमि को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों के निमित्त पिंडदान और श्राद्ध कर्म की विधि बताई थी। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।