बड़वानी. नर्मदा का जलस्तर बढ़ने से टापू बने राजघाट में बिजली के खुले तारों की चपेट में आने से सोमवार सुबह दो डूब प्रभावितों की मौत हो गई, वहीं तीन की हालत गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। लापरवाही के चलते हुए हादसे से गुस्साए लोगों ने शव को नाव में रखकर विरोध प्रदर्शन किया गया। उधर, आंदोलन प्रमुख मेघा पाटकर ने इसे बेकसूरों की हत्या बताते हुए आंदोलन तेज करने की सरकार को चेतावनी दी है।
जानकारी के अनुसार सोमवार सुबह राजधाट के 5 डूब प्रभावित नाव से खाना लेकर जा रहे थे, तभी उनकी नाव बिजली के खुले तारों की चपेट में आ गई। बिजली का झटका लगने से नाव में सवार राजघाट निवासी चिमन पिता नटवर दरबार और संतोष पिता लालसिंह की मौत हो गई। हादसे में तीन लाेग झुलस कर घायल हो गए। हादसे की सूचना के बाद पुलिस और प्रशासन के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे, जहां उन्हें जनता के रोष का सामना करना पड़ा। लोगों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाहीं के चलते यह हादसा हुआ है।
मेघा बोलीं- यह बेकसूरों की हत्या, आंदोलन को तेज करेंगे
नर्मदा बचाव आंदोलन की प्रमुख मेघा पाटकर ने कहा कि कहा कि यह बेकसूरों की हत्या है। दिल्ली और गुजरात मिलकर जो सरदार सरोवर बांध में पारी भर रहे हैं। उसके सामने मप्र की सरकार और जनता को एक साथ मिलकर आवाज उठाने की जरूरत है। राजघाट पर पुनर्वास के बिना जो परिवार थे, उनके आने-जाने के लिए कोई साधन नहीं रखा। पिछले सालों से सरकार ने पूरी वोट जब्त कर ली, जिससे बड़ी संख्या में गांव में केवट होने के बाद भी मदद नहीं कर पाए। आखिर में गांव के छोटे नाव वाले मदद को आगे आए, लेकिन एमपीईबी ने सभी जगह की बिजली नहीं काटी। खेतों में बिजली चालू होने से करंट पानी में फैल गया और नाव में जा रहे दो लोगों की करंट लगने से मौत हो गई, जबकि तीन लोगों की हालत गंभीर है।
मेघा पाटकर ने कहा कि यहां 32 हजार परिवार आज भी रह रहे हैं, क्या सरकार बांध में पानी भरकर इन्हें भी डुबोएंगे। इस घटना से दिल्ली और गुजरात की सरकार को सबक सीखना चाहिए। मप्र सरकार को एक बूंद पानी आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। हम आंदोलन को तेज करेंगे। पानी आगे बढ़ा तो तमाम सरकारें इसके लिए हत्यारे घोषित होंगी। गुजरात में जो जमीन पीड़ितांे को दी गई, वहीं कोई सुविधा नहीं हैं। जो खेत दिए वहां खेती नहीं हो सकती है। इन्होंने मजबूरों को फंसा दिया। 16 हजार परिवारों को डूब क्षेत्र में आने की घोषणा की गई, लेकिन उन्हें कोई कागज नहीं दिया गया। वे आज भी भटक रहे हैं।