संभव है कि शीर्षक पढ़कर आप संवाद के बारे में कोई विशेष राय बना लें. इसलिए, पहले ही स्पष्ट करना जरूरी है कि यह 'उस' प्रेम के बारे में नहीं है, जिसका हम बहुत अधिक सरलीकरण कर बैठे हैं. बल्कि उस गहरे भाव के बारे में है, जो हमारे हृदय की गहराइयों में इतना डूबा हुआ है कि पहुंच से बाहर हो गया. प्रेम अनिवार्य रंग है. इसके बिना जीवन का इंद्रधनुष अधूरा है. इसे अपने भीतर रख हम भूल गए हैं! ठीक वैसे, जैसे जरूरी कागज बहुत संभाल कर रखने के बाद खोजने पर भी नहीं मिलते!