कश्मीर की वादियों में सेब के बागानों और केसर के खेतों जितने ही पसरे हुए हैं कब्रिस्तान भी. एक पिता आज किसी गमजदा पड़ोसी को तसल्ली देता है तो अगले ही रोज अपने नन्हे बच्चे को दफना रहा होता है. फायरिंग, क्रॉस फायरिंग, एनकाउंटर के बीच मौत का कैलेंडर हर लम्हा फड़फड़ाता रहता है. कश्मीरी पिता के कंधों पर दोहरी जिम्मेदारी है. एक- बच्चे को बाहरी खतरों से बचाने की और दूसरी- उसके नाजुक मन को अंदरुनी जख्मों से बचाए रखने की. पढ़िए, कश्मीर के पुलवामा में रहते एक पिता शाहिद हुसैन खान की कहानी.