हम ज़िंदगी और मौत से 'डील' करते हैं और उन सब चीज़ों से, जो इनके बीच शामिल हैं. यानी मौत से ज़िंदगी की जद्दोजहद. अपने सामने उस मरीज़ को दम तोड़ते देखते हैं, जिसे बचाने के लिए दिनों-महीनों बिताए थे. मौत वो शै है, जिससे आप कभी उबर नहीं सकते, खासकर जब वो मासूम बच्चे की हो या जवान चेहरे की. मौत के 'दर्द' के साथ हमें उसकी 'जिम्मेदारी' भी सहनी होती है.