अस्पताल पहुंचने के बाद आपके सामने कुछ भी आ सकता है. खासकर इमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी हो तो हाथों के हुनर से ज्यादा दिल की मजबूती चाहिए. खून से लथपथ इंसान, टुकड़ों में कटी लोथ, धीमी पड़ती सांसों वाला नन्हा सीना- स्ट्रेचर पर कुछ भी हो सकता है. ऐसे माहौल में भी कई लोग पिस्टल खोंसे आ जाते हैं. वे चाहते हैं कि लगभग तंदुरुस्त दिख रहा उनका मरीज पहले देखा जाए. ओपीडी में भी कमोबेश यही हालात हैं. यहां भी मरीज का डॉक्टर से सिर्फ शिकायत का रिश्ता है.