कैसे बने देवव्रत “भीष्म पितामह”| महाभारत | अर्था

Artha 2019-02-05

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देवव्रत से भीष्म बनने की कहानी महाभारत के महाकाव्य में अत्यंत काव्यमय रूप में वर्णित की गई है। इस वीडियो में हम आपको भीष्म पितामह के इसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं

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१ भीष्म के जन्म की कहानी की शुरुवात ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से होती है। एक बार अष्टवसु अपनी पत्नियों के साथ ऋषि वशिष्ठ के आश्रम गए थे। वहा उन्होंने कामधेनु को देखा और वह उसे अपने साथ लेकर जाना चाहते थे

२ प्रभास नाम के वसु ने अपने अन्य वसु भाइयों के साथ मिलकर उस दिव्य गाय को चुराने की योजना बनाई। परंतु उन्हें ऋषि वशिष्ठ ने इस अपराध के लिए पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेने का शाप दिया। दिव्य गाय के चुराने वाली योजना का मुख्य आधार प्रभास था इसलिए ऋषि ने उसे धरती पर अधिक काल तक जीवित रहने का शाप दिया

३ इन अष्टवसु ने राजा शंतनु और देवी गंगा के पुत्रों के रूप में जन्म लिया, परंतु देवी गंगा इन बच्चों को डूबा कर मारती रही और शंतनु ने उससे इस बारे कुछ भी नहीं पूछा क्यूंकि उसने देवी गंगा को ऐसा वचन दिया था। ऐसा आठवे पुत्र के जन्म होने तक चलता रहा

४ प्रभास ने राजा शांतनु और देवी गंगा के आठवें बच्चे के रूप में जन्म लिया, इस वक्त देवी गंगा इस बच्चे को नहीं मार सकी। और यही बच्चा और कोई नहीं बल्कि देवव्रत था जिसे सभी पवित्र व्यक्तियों द्वारा प्रेम मिला

५ देवव्रत के जन्म के बाद, देवी गंगा उसे विभिन्न क्षेत्रों में लेकर गई ताकि उसे बृहस्पति, शुक्राचार्य, वशिष्ठ, सनतकुमार, मार्कंडेय, परशुराम, इंद्र और अंत में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) सहित पवित्र ऋषियों द्वारा प्रशिक्षित किया जा सके।

६ इस अंतराल में राजा शंतनु अपनी पत्नी और पुत्र के दूर जाने से विरह में चला गया और इसलिए उसने ब्रम्हचर्य का अभ्यास किया, साथ ही साथ अपने राज्य को अच्छे से शासन करने के लिए स्वयं को निर्धारित किया।

७ कुछ समय बाद देवी गंगा फिर से अपने पुत्र के साथ राजा शंतनु के पास आयी जिस पुत्र को सभी पवित्र व्यक्तियों द्वारा प्रेम और लंबे जीवन का आशीर्वाद मिला था और देवी गंगा ने राजा शंतनु को उनके पुत्र को साथ ले जाने के लिए कहा

८ राजधानी, हस्तिनापुर में वापस लौटने पर, शंतनु ने देवव्रत को राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किआ

९ इस घटना के चार स

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