विकास का राग अलापने वाली राजनैतिक पार्टियां, चुनाव से पहले रंग क्यों बदलने लगती हैं

Inkhabar 2018-03-30

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प्रश्नकाल यानी वो सवाल जिसका पूछा जाना बेहद जरूरी है। और आज का सवाल देश के तीन बड़ें राज्यों से जुड़ा हुआ है... दो राज्य तो हिंसा की चपेट में हैं जबकि तीसरा राज्य चुनाव के मुहाने पर खड़ा है... हम बिहार, बंगाल और कर्नाटक की बात कर रहे हैं.... इन तीनों राज्यों में हिंदुत्व के मुद्दे को हवा दी जा रही है... साल 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे... एक साल से कम का वक्त बचा है... इसलिए क्या पक्ष... क्या विपक्ष... सत्ता तक पहुंचने के लिए हर पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे को भुना रही है... कहीं हिंसा को हिंदुत्व के साथ जोड़ा जा रहा तो कहीं एक समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देना हिंदुत्व का मुद्दा बन गया है.... सवाल उठता है कि विकास का राग अलापने वाली राजनैतिक पार्टियां चुनाव से ठीक पहले अपना रंग क्यों बदलने लगती हैं... उन्हें सत्ता शिखर तक पहुंचने के लिए हिंदुत्व की जरुरत क्यों पड़ती है... विरोधी सरकार पर आरोप लगाते हैं और सरकार विरोधियों पर पलटवार करती है... इन सबके बीच अगर कोई मारा जाता है तो वो है आम वोटर... जो चुनाव में मुद्दों के भंवर में खो जाता है और विकास के असल मुद्दे से भटक जाता है... इसका जिम्मेदार कौन है...

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