पुराणों में वर्णित मंद्राचल जिसे आज हम मंदार पर्वत के नाम से जानते हैं, धार्मिक दृष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण पर्वत है। यह पर्वत बिहार और झारखंड के सीमावर्ती बांका जिले के बौंसी में स्थित है। समुद्र मंथन में मथानी के तौर पर मंदार पर्वत का उपयोग हुआ था। तब से इस पर्वत का धार्मिक महत्व काफी बढ़ गया है। मार्कंडेय पुराण, सहित कई पुराणों में मंदार पर्वत का वर्णन किया गया है। लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु सदैव मंदार पर्वत पर निवास करते हैं।
करीब सात सौ पचास फीट उंचे काले ग्रेनाईट के एक ही चट्टान से बना पर्वत पर एक दर्जन कुंड एवं गुफाएं हैं, जिसमें सीता कुंड, शंख कुंड, आकाश गंगा के अलावे नरसिंह भगवान गुफा, शुकदेव मुनी गुफा, राम झरोखा के अलावे पर्वत तराई में लखदीपा मंदिर, कामधेनु मंदिर एवं चैतन्य चरण मंदिर मौजुद हैं। वहीं मंदार पर्वत पर काफी संख्या में देवी देवताओं की प्रतिमाएं रखी हुई। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यहां काफी प्राचीण प्रतिमाएं हैं। पिछले कइ सालों से यह यहां इसी प्रकार पड़ी हुई हैं। काले ग्रेनाईट पत्थर का विशाल पर्वत अपने आप में कई सदियों का इतिहास समेटे हुए है। जानकारों के अनुसार औरव मुनी के पुत्री समीका का विवाह धौम्य मुनी के पुत्र मंदार से हुआ था। जिसकी वजह से इस पर्वत का नाम मंदार पड़ा था।
मंदार पर्वत तीन धर्मों की संगम स्थली भी है। पर्वत तराई में सफा होड़ धर्म के संस्थापक स्वामी चंदर दास के द्वारा बनवाया गया सफाधर्म मंदिर है तो मध्य में भगवान नरसिंह गुफा है, जिसमें भगवान नरसिंह विराजमान हैं। जबकि पर्वत शिखर पर जैन धर्म के 12 वें तीर्थंकर भगवान वासूपूज्य की निर्वान स्थली है। वहां पर उन्होने तप किया था जिसके वाद तप कल्याणक कहलाए। देश के कोने-कोने से सालों भर जैन मतावलंबी मंदार गिरी आकर अपने तीर्थंकर के चरण स्पर्श करते हैं। मंदार में हर साल मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी से एक माह का मेला लगता है। जहां लाखों की संख्या में आकर पापहरणि सरोवर में मकर स्नान करते हैं। यहां की प्राकृतिक मनोरम वादियां भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।